Monika garg

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लेखिनी 15 पार्ट सीरीज प्रतियोगिता # सती बहू(भाग:-6)

गतांक से आगे:-


चंदा भी पानी का मटका उठाकर चल तो दी पर अपने बचपन के साथी के आगे यूं अपने आप को बेबस और लाचार महसूस कर रही थी।

चंदा फिर से बचपन की यादों में खो गयी……

अहां …हां उसे याद आ रहा था ,कितनी ही बार वो हवेली से छुपा कर श्याम के लिए कभी खाना तो कभी मिठाई ले जाती थी ।वैसे भी उसके पिता जी के पास लोगों के आने जाने का तांता लगा रहता था।झूठी शान दिखाने के चक्कर में कभी वसूली वाले तो कभी गरज के यार उनके चारों ओर घूमते थे ।खाने पीने से मेज सजी रहती थी ।उसमें से वह अक्सर श्याम के लिए चुराकर कुछ थोड़ा बहुत ले जाती थी।

चंदा अब सोच रही थी कि वो आखिर श्याम के लिए खाना चुराकर क्यों ले जाती थी ? जबकि बंसी काका के यहां खाने पीने कि कोई कमी नहीं थी ……।

हां …हां शायद वो मन ही मन श्याम को चाहने लगी थी।उसको उसका यूं प्यार से बुलाना ,उसको हक से डांटना,फिर मनाना उसे अच्छा लगता था।


चंदा सोचती सोचती कब घर की देहरी पर आ गयी उसे पता ही नहीं चला ।पर वो चाचा ससुर का घर नहीं अपने ससुराल की देहरी पर खड़ी थी। वहां क्या देखती है विशम्बर नयी दुल्हनिया के साथ मटरगशती कर रहा था।जैसे ही उसने चंदा को देखातो उसे जलाने की गरज से  उसने कमली को अपने ओर करीब खींच लिया और कसकर गले से लगा लिया।ये सब देकर चंदा की सांसें ही अटक गई कंठ में रुलाई अटक कर रह गई वो वहां से दौड़ कर चाचा ससुर के आंगन में आई और मटके को रख अपनी कोठरी में दौड़कर चली गई।

चाहे कितना ही पिता को वादा किया हो चंदा ने कि वो कभी नहीं रोएंगी पर वह एक औरत थी और औरत कभी भी अपने पति को दूसरी औरत के साथ नहीं देख सकती।उसकी रुलाई फूट पड़ी, ना जाने कितनी देर तक चंदा रोती रही जब मन का तूफान शांत हो गया तब बाहर आकर मुंह धोया और रात के खाने के लिए रसोई में जुट गई। 

पता नहीं क्यों रह रह कर आज श्याम का चेहरा उसके आंखों के आगे आ रहा था।उसका उसे "चंदू" कह कर बुलाना ,उसके सहसा उठने पर साथ उठना और मटके को हाथ लगवाना।फिर सब से बड़ी बात जो सारा गांव और उसके ससुराल वाले सभी मानते थे कि चंदा बांझ है शादी के साथ सालों बाद भी मां नहीं बन सकी उस बात को सिरे से नकारना,उस में चंदा की ग़लती ना मानकर विशम्बर की भी गलती हो सकती है ये मानना कहीं अंदर से चंदा को छू गया।

अचानक ही श्याम की पसंद की सब्जी बना दी और घर में सबको खाना खिलाकर चंदा ने चार रोटी और सब्जी थाली में डाली और उसको ढककर श्याम के घर की ओर चल दी।वह मन ही मन सोच रही थी कि आखिर वो ऐसा क्यों कर रही है पर ना जाने कदम अपने आप श्याम के कमरे की ओर बढ़ रहें थे।

ये शायद एक औरत के मन का विद्रोह था कि अगर मेरा पति मेरे बिना जीवन जी सकता है तो मैं क्यों नहीं ??


धड़कते दिल से उसने श्याम की कोठरी का दरवाजा खटखटाया।अंदर से आवाज आई,"कौन?"

श्याम शायद खाना बना रहा था क्योंकि धुआं और उपलों के जलने की म क बाहर तक आ रही थी।

चंदा ने फिर से दरवाजा खटखटाया।

"अरे भई ….कौन है? बोलते क्यों नहीं?"

श्याम ने झुंझलाकर जैसे ही दरवाजा खोला सामने चंदा को थाली हाथ में लिये खड़े देखकर उसके हाथ से कलछी जमीन पर गिर गयी और मुंह खुला का खुला रह गया ।जिसकी एक झलक पाने के लिए वो घंटों पनघट पर खड़ा रहता था ।आज अचानक उसे अपने सामने यूं खड़ा देखकर श्याम भौंचक्का रह गया।

" चंदू … तुम … और यहां पर ।"

श्याम ने हैरानी से कहा।

तभी चंदा ने आगे बढ़कर श्याम के होंठों पर उंगली रख दी।

"शशशश । धीरे बोलो।सबसे छुपती छुपाती आई हूं । क्या सारा घर धुआं दान बना रखा है ।अब हर रोज मैं खाना ला दिया करूंगी।वैसे ही जैसे बचपन में पिता जी से छुपकर तुम्हारे लिए इमरती लाती थी ।तुम को कितनी पसंद थी ना।" यह कहकर चंदा खिलखिला पड़ी ।पर श्याम ने महसूस किया की चंदा की ये हंसी एक दम कोरी सफेद है वह उसमें सप्त रंग भर कर ही दम लेगा।

"ओह चंदू ! तुम भी ना ।वो भी क्या दिन थे हम मिट्टी के घरौंदे बनाते थे और तुम मेरी पत्नी बनकर कैसे सारा दिन मेरा इंतजार करती थी और तुम्हारा झूठ-मूठ का बना खाना भी मुझे तृप्त कर जाता था। मैंने हमेशा ही एक पत्नी और प्रेयसी के रुप में तुम्हें देखा।"

श्याम एक ही रो में बह कर अपने मनके उद्गार कह गया।

चंदा टुकर टुकर उसके मुंह की ओर देख रही थी ।बाद में जब श्याम ने अपने शब्दो पर गौर किया तो असहज हो उठा।" मेरा मतलब मैं…वो..बचपन।


चंदा को समझ आ चुका था श्याम का उसी के गांव में इंजीनियर बन कर आना और उसी के ससुर के साथ काम करना और उसे पनघट पर वो पीछा  करती आंखों का रहस्य भी कुछ-कुछ समझ आ रहा था।

" चलों अब फटाफट खाना खा लो और जूठे बर्तन मुझे दे दो तो मैं चलूं।"

चंदा ने श्याम को सहज करते हुए कहा। श्याम ने फटाफट पानी से चूल्हे की आग शांत की और हाथ-मुंह धोकर खाना खाने बैठ गया ।जब वो खाना खा रहा था तो चंदा उसे बड़े प्यार से देख रही थी वो पहले जैसा भोलाभाला श्यामू लग रहा था चंदा को ।वह पास पड़ा पंखा झलने लगी।तभी श्याम बोला," रहने दो चंदू। मुझे आदत लग जाएंगी।कौन हर रोज मुझे इतने प्यार से खाना खिलाएगा?"

अनायास ही चंदा उठी और जूठे बर्तन उठाकर बोली,"मैं"

और यह कहकर हल्की मुस्कान बिखेरते हुए वह श्याम की कोठरी से बाहर चली गई।


दोनों के मन में एक दूजे के लिए प्यार है पर पहले कौन कहेगा ।इसके लिए अगले भाग का इंतजार….

(क्रमशः)


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2 Comments

HARSHADA GOSAVI

15-Aug-2023 12:51 PM

Nice

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Irfan

18-Jun-2023 11:08 AM

Nice

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